कोलेस्ट्रोल के नाम पर महाधोखा

कोलेस्ट्रोल के नाम पर महाधोखा

चालीस साल से कोलेस्ट्रोल के नाम पर दुनिया को धोखा दिया जा रहा था। 
अमेरिकी डाक्टरों, वैज्ञानिकों और ड्रग कंपनियों के गठजोड़ ने 1970 से अब तक कोलेस्ट्रोल कम करने की दवाएं बेच-बेच कर 1.5 खरब डालर डकार लिए। 
बेहिचक इसे कोलेस्ट्रोल महाघोटाला कहा जाए तो कोई हर्ज नहीं। पेथलेबों में इसकी जांच का धंधा भी खूब चमका। डाक्टरों और ड्रगिस्ट की भी चांदी हुई। पता नहीं अनेक लोगों ने कोलेस्ट्रोल फोबिया के कारण ही दम तोड़ दिया होगा। कोलेस्ट्रोल घटाने वाली दवाओं के दुष्प्रभाव से ना मालूम कितने लोगों के शरीर में नई-नई विकृतियों ने जन्म लिया होगा। 
बहरहाल अब अमेरिकी चिकित्सा विभाग ने पलटी मार ली है। कोलेस्ट्रोल के कारण जिन खाद्य वस्तुओं को निषेध सूची में डाला गया था, उन्हें हटा लिया है। अब कहा जा रहा है कि कोलेस्ट्रोल सिर्फ कोलेस्ट्रोल है और यह अच्छा या बुरा नहीं होता। यह मानव शरीर के लिए आवश्यक है।
नर्व सेल की कार्यप्रणाली और स्टेराइड हार्मोन के निर्माण जैसी गतिविधियों में इसकी जरूरत होती है। 
हम जो भोजन लेते हैं उससे मात्र 15-20 फीसद कोलेस्ट्रोल की आपूर्ति होती है, जबकि हमें प्रतिदिन 950 मिलीग्राम की जरूरत होती है। शेष कोलेस्ट्रोल हमारे लिवर को बनाना पड़ता है।
अगर हम कोलेस्ट्रोल वाला खाना नहीं खाएंगे, तो जाहिर है लिवर को ज्यादा मशक्कत करना पड़ेगी। 
जिनके शरीर में कोलेस्ट्रोल ज्यादा होता है, तो यह समझिए कि उनका लिवर ठीक ठाक काम कर रहा है।
कोलेस्ट्रोल के नाम पर डाक्टर लोगों को नट्स, घी, मक्खन, तेल, मांस, अंडे आदि न खाने या कम खाने की सलाह देते रहे। असली घी को दुश्मन और घानी के तेलों को महादुश्मन बता कर, रिफाइंड तेलों का कारोबार चमकाते रहे अब तो रिफाइंड तेलों की पोल भी खुल चुकी है, जबकि ये सब हमारे लिए आवश्यक हैं। यह थ्योरी भी दम तोड़ चूकी है कि कोलेस्ट्रोल धमनियों में जम जाता है, जिसके कारण ब्लाकेज होते हैं और दिल का दौरा पड़ता है। असल में ब्लाकेज का कारण केल्सीफिकेशन है। यही केल्सीफिकेशन गुर्दों और गाल ब्लडर में पथरी का कारण भी बनता है। 
अमेरिकी हार्ट स्पेशलिस्ट डा. स्टीवन निसेन के अनुसार चार दशकों से हम गलत मार्ग पर चल रहे थे। डा. चेरिस मास्टरजान के अनुसार अगर हम कोलेस्ट्रोल वाला आहार नहीं लेते तो शरीर को इसका निर्माण करना पड़ता है। 
एलोपैथी में थ्योरियां बार-बार बदलती हैं जबकि हमारा आयुर्वेद हजारों साल से वात, पित्त और कफ के संतुलन को निरोगी काया का परिचायक मानता आ रहा है। इनका शरीर में असंतुलन ही रोगों को जन्म देता है। 
आयुर्वैद सिर्फ चिकित्सा प्रणाली नहीं सम्पूर्ण जीवनशैली सिखाता है। होमियोपैथी भी 
लाइक क्योर लाइक के सिद्धांत पर टिकी है। आज अधिकांश बीमारियों का कारण है गलत जीवनशैली और फास्टफुड जैसा आहार।
अगर जीवनशैली में सुधार कर लिया जाए, प्रकृति से vनजदीकियां कायम रखी जाएं और योग प्राणायाम का सहारा लिया जाए तो रोगों के लिए कोई स्थान नहीं है।

 

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