शोधकर्त्ताओं ने विशेष एचआईवी एंटीबॉडिज (रोग-प्रतिकारक) के नए गुणों का खुलासा करने में सफलता पाई है, जिसे ब्रॉडली न्यूट्रालाइजिंग एंटीबॉडिज (बीएनए) कहा जाता है। शोधकर्ताओं ने कहा कि इस खुलासे से हम एचआईवी का टीका बनाने के एक कदम और पास पहुंच गए हैं। बीएनए का विकास एचआईवी के टीके का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
एचआईवी से संक्रमित कुछ ही लोगों में बीएनए का निर्माण होता है। बीएनए की सहायता से टीका बनाना प्रमुख उद्देश्य है। इसकी सहायता से टीकाकरण के बाद वही सुरक्षा एचआईवी से मिलेगी, जैसा अन्य बीमारियों में टीकाकरण के बाद मिलता है। अमेरिका में बॉस्टन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर थॉमस केप्लर ने कहा, ‘‘इस परिणाम से स्पष्ट होता है कि बीएनए टीके का विकास संभव है।’’
उल्लेखनीय है कि एंडिबॉडी प्रतिरक्षण ‘बी’ कोशिकाओं से बनती है। जब बी कोशिकाएं किसी एंटीजेंस (रोगाणु) के संपर्क में आती है, तो उसकी रचना में परिवर्तन आ जाता है, जो एंटिजेंस के लिए घातक होता है। इस परिवर्तन को ‘इंडेल’ कहा जाता है। शोधकर्ताओं ने एक विशेष बीएनए का अध्ययन किया, जिसे सीएच 31 कहते हैं। इसमें काफी ज्यादा मात्रा में इंडेल पाया गया। जिसका अर्थ है कि इसमें रोगाणुओं से लडऩे की असीम क्षमता है।
इस प्रकार, सीएच 31 के विकास में इंडेल की महत्वपूर्ण भूमिका उजागर हुई। केप्लर ने कहा, ‘‘सीएच31 की एचआईवी से लडऩे की क्षमता को आंका गया, तो पता चला कि वही सीएच 31 ऐसा कर पाने में सक्षम थे, जिनमें इंडेल मौजूद थे और अधिक मात्रा में थे।’’ यह अध्ययन पत्रिका ‘सेल होस्ट एंड माइक्रोब’ में प्रकाशित हुआ है।