चारों तरफ लगातार बढ़ते प्रदूषण का असर हमारी सेहत पर किस तरह पड़ रहा है, इस बारे में अलग से कुछ कहने की जरूरत नहीं। चाहे वह हमारे आस-पास की हवा हो जिसमें हम सांस लेते हैं या फिर जो पानी हम पी रहे हैं, हर जगह बढ़ते प्रदूषण की मार तो है ही, उस पर से खाने की चीजों में मिलावट अलग। इस वजह से स्थिति और बुरी होती जा रही है। साथ ही इस बात को खास तौर पर समझने की जरूरत है कि बच्चों पर इसका असर कुछ ज्यादा होता है। बच्चों में रोगों से लड़ने की क्षमता ज्यादा नहीं होती। इसलिए वयस्कों के मुकाबले उनके बीमार होने की आशंका भी ज्यादा होती है।
रोग प्रतिरोधक क्षमता
बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता दो तरह से बढ़ती है। जानकार बताते हैं कि आम तौर पर जब हम बाहर के किसी संक्रमण के शिकार होते हैं, तब हमारा शरीर अपने आप उस संक्रमण से लड़ने की क्षमता विकसित करता है। इसे एंटीबाडी कहते हैं। शरीर में ऐसे एंटीबाडी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने की क्षमता कमोबेश सभी में मौजूद होती है। मगर कुछ मामलों में हमारा शरीर बाहरी हमले से लड़ने के लिए सक्षम नहीं होता। उन खतरों से बचने के लिए हम विशेष तरीका अपनाते हैं। इसमें हम शरीर को बाहर से ऐसे एंटीबॉडी उपलब्ध करवाते हैं, जिससे वह संक्रमण से लड़ने के लिए पहले से तैयार हो। विभिन्न तरह के टीके इसी तैयारी के तहत लगाए जाते हैं।
विभिन्न बीमारियों से बचाने के लिए अब हमारे पास कई तरह के टीके उपलब्ध हैं। इसलिए अब यह सलाह दी जाती है कि सभी बच्चों को तय उम्र पर इन टीकों की नियत खुराक जरूर दी जाए। कुछ टीकों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम अवधि के लिए होती है। ऐसे में उसका बूस्टर डोज भी देना होता है। हालांकि यह भी सच है कि अधिकांश टीके सीमित क्षमता वाले ही होते हैं। यानी शायद ही ऐसा कोई टीका हो, जिसके बारे में यह दावा किया जा सके कि यह संबंधित रोग से सौ फीसदी सुरक्षा उपलब्ध करवा देगा। लेकिन ये टीके(वैक्सीन्स) उस रोग की आशंका को काफी सीमित कर देते हैं। इसलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) से ले कर विभिन्न देशों की सरकारें तक इनकी सिफारिश करती हैं।
पौष्टिक आहार और स्वास्थ्य
इन दोनों उपायों के साथ ही यह भी जरूरी है कि बच्चों की खुराक में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली चीजों को भरपूर रूप से शामिल किया जाए। नवजात बच्चों के लिए मां का दूध रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बड़े बच्चों में यह काम फलों, सब्जियों और अन्य प्राकृतिक उत्पादों के जरिए हो सकता है। इसलिए यह बेहद जरूरी है कि बच्चों को ज्यादा से ज्यादा मात्रा में हरी सब्जियां और फल दें। मौसमी फल खास तौर पर बच्चों में इम्यूनिटी बढ़ाते हैं। मौसमी फलों की खास बात यह होती है कि ये एक तरफ तो बहुत स्वादिष्ट होते हैं वहीं इनकी कीमत भी अपेक्षाकृत कम होती है। इसलिए सबसे अच्छा तरीका यह है कि बाजार में जिस मौसम में जो फल सबसे सस्ते मिल रहे हों, उसी को खरीदें। बच्चों को दिन भर में पांच बार अलग-अलग रूप में फल और सब्जियां दी जा सकती हैं। हालांकि यह बहुत कुछ बच्चों की रुचि पर निर्भर करता है, लेकिन छोटे बच्चे के लिए इसकी हर खुराक औसतन दो बड़ी चम्मच के बराबर और बड़े बच्चों के लिए एक कप के बराबर हो सकती है।
बच्चों को चारों ओर से होने वाले जीवाणुओं और विषाणुओं (वाइरस) के हमले से सुरक्षा देना बेहद जरूरी है। नवजात बच्चा एक हद तक विषाणुओं से भले लड़ ले, लेकिन जीवाणुुओं से मुकाबला करने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं होता। उस पर से अगर वह 37 हफ्तों के गर्भाधारण से पहले हुआ हो, तब तो उसमें यह क्षमता बहुत कम होती है। छोटे बच्चों को अपने अभिभावकों और परिवार वालों से भी बैक्टीरिया पहुंचने का खतरा होता है। परिवार वालों के हाथ, नाक और मुंह में मौजूद जीवाणु(बैक्टेरिया) उन तक आसानी से पहुंच सकते हैं। इसलिए छोटे बच्चों को छूने से पहले अच्छी तरह साबुन से हाथ धोना जरूरी है।
इन बातों पर दें ध्यान
अगर बच्चा समय से बहुत पहले हुआ है, तब तो और ज्यादा सावधानी बरतनी होती है। बड़े बच्चों को भी ऐसे संक्रमण के बारे में जागरूक करने की जरूरत है। उन्हें बताना होगा कि ये बैक्टीरिया उन तक कैसे पहुंचते हैं। शौचालय और कचरे आदि से ही नहीं, हमारे घरों के दरवाजों के हैंडल तक से ये बैक्टीरिया उन तक पहुंच सकते हैं। इसलिए उनमें मुंह, नाक, आंख, कान आदि में अंगुली करने की आदत नहीं पड़ने देनी चाहिए। इसी तरह हर बार खाना खाने से पहले साबुन से अच्छी तरह हाथ धोने की आदत डालनी चाहिए। अगर किसी बच्चे को छींक या खांसी आती है, तो इस दौरान उसे अपने मुंह को ढककर रखने की सलाह भी दी जानी चाहिए। साथ ही यह भी ध्यान रखिए कि ये उपाय बच्चों को बीमारियों से बचाते जरूर हैं, लेकिन उसे सौ फीसदी सुरक्षित नहीं करते।