न्यूरो डीजेनरेटिव डिसआर्डर तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) में लगातार होने वाली क्षीणता से उत्पन्न रोगों का एक समूह है। इस समूह में मुख्यत: एमायोट्रापिक लैटीरल स्क्लीरोसिस (एएलएस या मोटर न्यूरॉन डिजीज-एमएनडी), अल्जाइमर डिजीज और पार्किन्संस डिजीज को शामिल किया जाता है।
चिंताजनक पहलू
इलाज की बेहतर विधियां, तकनीकें और संसाधन अब भारत में उपलब्ध हैं। इस कारण विकसित देशों की तर्ज पर अपने देश में भी तेजी से वृद्ध नागरिकों की संख्या बढ़ रही है और साथ में इस उम्र में होने वाली बीमारियां भी। एक अध्ययन के अनुसार देश में हर चौथा व्यक्ति किसी न किसी प्रकार के न्यूरो डीजेनरेटिव डिसऑर्डर से पीड़ित है।
आशा की किरण
चूंकि ज्यादातर बीमारियों का इलाज डॉक्टरों के पास उपलब्ध है, इसलिए पीड़ित लोगों का जीना मुश्किल नहीं होता, लेकिन दुर्भाग्यवश न्यूरोलॉजिस्ट्स के पास अभी भी इन बीमारियों से निजात पाने के लिए समुचित समाधान मौजूद नहीं है। बावजूद इसके, अंतरराष्ट्रीय शोध-अध्ययनों से प्राप्त सबसे भरोसेमंद इलाज के रूप में न्यूरल स्टेम सेल्स का प्रयोग शुरू हो चुका है। यह तथ्य प्रमाणित हो तुका है कि ये न्यूरल स्टेम सेल्स मरीजों के लिये सुरक्षित हैं। चूंकि देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। इसलिये चुंनिदा स्टेम सेल लैब्स ने ऑटोलोगस न्यूरल प्रीकर्सर सेल्स (स्वयं से प्राप्त सेल्स) का निर्माण आरंभ कर दिया है और पायलट स्टडी में ऐसी सेल्स सुरक्षित ही नहीं बल्कि कारगर भी पायी जा रही हैं।
कैसे प्राप्त करें न्यूरल प्रीकर्सर सेल्स
इन सेल्स को मरीज की बोन मैरो (अस्थि मज्जा) या रक्त से सुविधाजनक रूप से प्राप्त किया जा सकता है। चूंकि ये सेल्स ऑटोलोगस या स्वयं के शरीर से प्राप्त सेल्स हैं, इसलिए इनके ज्यादा प्रभावी होने के साथ ही दुष्परिणाम (साइड इफेक्ट या ऑफ्टर इफेक्ट)की भी आशंकाएं काफी कम रहती हैं।
कहां संभव है इनका प्रयोग
-एमायोट्रापिक लैटीरल स्क्लीरोसिस
-अल्जाइमर डिजीज
-पार्किन्संस डिजीज।
-सेरीब्रल पेल्सी।
-पाइनल कॉर्ड इंजरीज।
एक उदाहरण अपने देश से: सुरेन्द्र झा (नाम परिवर्तित) एक 35 वर्षीय युवक हैं। लगभग दो वर्ष पहले उनके बाएं पैर में कमजोरी महसूस होना शुरू हुई। उन्होंने शीघ्र ही डॉक्टर की सलाह ली, लेकिन पूरे इलाज के बावजूद उनकी कमजोरी बढ़ती गयी। नौबत यहां तक पहुंच गयी कि उनका चलना-फिरना दूभर हो गया था। न्यूरोलॉजिस्ट को दिखाने पर पता चला कि यह एमायोट्रापिक लैटीरल स्क्लीरोसिस (ए एल एस या मोटर न्यूरॉन डिजीज) नामक रोग है, जो समय के साथ बढ़ता जाता है और ज्यादातर मामलों में जानलेवा साबित होता है। चूंकि यह रोग बेहतर इलाज के बावजूद बढ़ता जाता है, इसलिये मेरे पास आने के पहले ही मरीज की चलने -फिरने की क्षमता काफी कम हो चुकी थी और दोनों हाथ की मांसपेशियां सूख गयी थीं। मरीज एक कप भी नहीं उठा सकता था। ऐसी स्थिति में मरीज में सुधार की संभावना काफी कम हो जाती है, लेकिन दो चरणों में बोन मैरो से प्राप्त स्टेम सेल्स ने अपना कार्य करना शुरू कर दिया। अब मरीज स्वयं बिस्तर से उठ सकता है, जो दो माह पूर्व तक संभव नहीं था। यह बानगी न्यूरल प्रीकर्सर की क्षमता व प्रभाव दोनों को प्रमाणित करती है।
एएलएस या ‘एमएनडी’ के लक्षण
-धीरे-धीरे शरीर की मांसपेशियों का क्षय होना।
-मांसपेशियों में फड़कन।
-आवाज स्पष्ट न होना।
-खाना चबाने की अक्षमता।
-खाना या पानी निगलने में समस्या।
-सांस लेने में तकलीफ होना।
जांचें
-ई.एम.जी. और एन.सी.वी. टेस्ट।
-एम.आर.आई. ब्रेन और स्पाइनल कॉर्ड।
-एएलएस’ के संबंध में विदेशों में हो रहीं अन्य खोजें..
-हाल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका की एक कंपनी को अमेरिकन फूड्स एन्ड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने न्यूरल स्टेम सेल्स से संबंधित फेज-2 ट्रायल की अनुमति प्रदान कर दी है।
-विशेष एंटीबॉयोटिक की उपयोगिता।
-एंटीसेन्स कंपाउंड (एक प्रकार का रसायन) का प्रयोग।
-जीन थेरेपी।
-एंटीऑक्सीडेंट द्वारा सेल डेमेज को बचाना।
न्यूरल सेल्स के कार्य
-मांसपेशियों की कार्य-क्षमता को बढ़ाती हैं।
-रोग बढ़ने की गति को धीमा कर देती हैं।
-शरीर में सेल रीजनरेशन (कोशिकाओं के पुनर्निर्माण) की क्षमता बढ़ा देती हैं।
(डॉ.बी.एस.राजपूत, स्टेम सेल्स ट्रांसप्लांट सर्जन क्रिटी केयर हॉस्पिटल, जुहू, मुंबई)