विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान के अनुसार भारत में लगभग 15 से 20 लाख लोग दमा से पीड़ित हैं। यहां डॉक्टरों का मानना है कि जागरूकता और शीघ्र इलाज, पिछले दशक में तेजी से बढ़ रही सांस की इस बीमारी को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
अनुमान के अनुसार पूरी दुनिया में 100 से 150 लाख के बीच लोग दमा से पीड़ित हैं, जिनमें 15 से 20 लाख लोग भारत से हैं। सांस लेने में परेशानी और और घरघराहट को नहीं समझ पाना दमा होने का बुनियादी कारण है। लेकिन, घर के अंदर एलर्जी पैदा करने वाले तत्व जैसे कि बिस्तर और कालीन पर पड़े धूल के कण दमा के बढ़ने का बड़ा कारण है। घर के बाहर एलर्जी पैदा करने वाले तत्व पराग, तंबाकू के धुएं और रासायनिक पदार्थ भी दमा होने का कारण है।
बहुत से ऐसे लोग हैं जो कि श्वास की तकलीफ को नहीं देख पाते लेकिन फिर भी वे इस वंशानुगत बीमारी ‘मौन दमा’ से पीड़ित होते हैं। दमा से बचाव के लिए कोई दवा उपलब्ध नहीं है। सिर्फ इस बीमारी के हमले को रोका जा सकता है। कुछ ऐसे लोग हैं जो दमा के मरीज होने का कोई कारण नहीं देख पाते। वैसे जो लोग अक्सर छींकते रहते हैं और जिन्हें अधिक समय खांसी रहती है, वे भी दमा के मरीज हो सकते हैं। ऐसे लोगों को शीघ्र ही इलाज की जरूरत है। जल्द इलाज कर दमा को नियंत्रित किया जा सकता है।
दमा को ठीक नहीं किया जा सकता लेकिन इसे नियंत्रित किया जा सकता है। दमा से पीड़ित लोगों को इसे बढ़ाने वाले कारकों से बचना चाहिए और उन्हें खुद को इसके इलाज के बारे में शिक्षित करना चाहिए।