र्यूमैटायड अर्थराइटिस के कारण शरीर में जो बदलाव आते हैं, उनका खुलासा तो मेडिकल साइंस कर चुकी है, लेकिन ये बदलाव किस कारणवश आते हैं, इस संदर्भ में शोध-अध्ययन जारी हैं। इसके बावजूद अभी तक यह पता नहीं चल सका है कि आखिर यह बीमारी क्यों होती है?
रोग और रोग प्रतिरोधक तंत्र
र्यूमैटायड अर्थराइटिस में शरीर के रोग-प्रतिरोधक तंत्र (इम्यून सिस्टम) में कुछ इस तरह से बदलाव आता है कि वह शरीर के अपने अंग को बाहरी समझकर इसके खिलाफ लड़ने लगता है। इस रोग का पहला निशाना जोड़(ज्वाइंट) की झिल्ली (साइनोविअम)बनती है। सही समय पर समुचित रोकथाम व इलाज न होने पर यह रोग पूरी हड्डी को नष्ट कर देता है। र्यूमैटायड अर्थराइटिस (आर.ए.) का खानपान से कोई संबंध नहीं है।
महिलाएं ज्यादा चपेट में
कई शोध-अध्ययनों व ऑब्जर्वेशंस से यह पता चला है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं में रूमैटाइड अर्थराइटिस के कहींज्यादा मामले सामने आते हैं। अमूमन 40 से लेकर 60 साल की उम्र वाली महिलाओं में यह रोग ज्यादा होता है।
लक्षण
-र्यूमैटायड अर्थराइटिस की शुरुआत में हाथों की उंगलियों में सूजन और दर्द महसूस होता है।
-सुबह के वक्त शरीर के लगभग सारे जोड़ों में जकड़न महसूस होना, जो लगभग आधे घंटे तक रहती है।
-बाद में यह रोग शरीर के अन्य जोड़ों में भी फैलने लगता है।
-भार या वजन को बर्दाश्त करने वाले जोड़ों जैसे घुटने और कूल्हे में ‘आर.ए.’ के लक्षण शीघ्र ही प्रकट होते हैं।
-यदि समुचित उपचार नहीं हुआ, तो जोड़ों में तिरछापन आने की आशंका कहीं ज्यादा बढ़ जाती है।
-जोड़ों का मूवमेंट धीरे-धीरे कम होता जाता है।
इलाज
यह सच्चाई है कि अभी तक रूमैटाइड
अर्थराइटिस का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन इस रोग को नियंत्रित जरूर किया जा सकता है। इसके बावजूद ‘आर.ए.’ का नियंत्रण दवाओं द्वारा किया जाता है। इस रोग की दवाएं दो श्रेणियों(कैटेगरी)में उपलब्ध हैं। पहली श्रेणी में दर्दनिवारक दवाएं शामिल हैं, जो इस रोग में अस्थायी राहत प्रदान करती हैं।
दूसरी श्रेणी की दवाओं को ‘इम्यूनो-मॉड्यूलेटर्स’ कहते हैं, जो शरीर के इम्यून सिस्टम में आयी खराबी को दूर करने में सहायक हैं। इसके अलावा फिजियोथेरेपी, व्यायाम व योगा करने से भी पीड़ित व्यक्ति को राहत मिलती है। याद रखें, रोग की चरम अवस्था में जोड़ व कूल्हा प्रत्यारोपण के अलावा अन्य कोई विकल्प शेष नहींरहता है।