इबोला नामक बीमारी से अब तक दुनियाभर में लगभग 15 हजार लोग ग्रस्त हो चुके हैं और लगभग 6 हजार लोगों की मौतें हो चुकी हैं। इस जानलेवा बीमारी से प्रभावित 50 से 60 फीसदी मरीज बच नहीं पाते, लेकिन कुछ सजगताएं बरतकर इस रोग से बचा जा सकता है…
पिछले 10 महीनों से दुनिया के कई देशों खासकर अफ्रीका महाद्वीप के अनेक देशों में इबोला ने अपना कहर बरपा रखा है। दुनिया भर का ध्यान इस बीमारी पर है। हाल में ही एक भारतीय नागरिक भी इस बीमारी की चपेट में आ चुका है, लेकिन अब यह मरीज ठीक हो चुका है।
दरअसल, इस मरीज का अफ्रीकी देश लाइबेरिया में इलाज हो चुका था। इसके बावजूद उसके शरीर में इबोला के कुछ वाइरस मौजूज थे। इस मरीज को चिकित्सकीय निगरानी में रखा गया था। आप समझ गए होंगे कि हम बात कर रहे हैं इबोला वाइरस से होने वाली बीमारी के बारे में।
ऐसे पड़ा इबोला नाम
1976 में इस बीमारी का एक मरीज अफ्रीका के कांगो देश में स्थित इबोला नदी के किनारे एक क्षेत्र में पाया गया था। इस नदी के नाम पर ही इस वाइरस का नाम इबोला वाइरस पड़ा। इससे मिलते-जुलते तीन और वाइरस हैं, पर उनके संक्रमण से होने वाली बीमारी कम खतरनाक होती है। यह बीमारी पहले जंगली जानवरों और चमगादड़ों (फ्रूट बैट्स) में होती है और इनसे यह मनुष्यों में फैल जाती है।
विभिन्न कारण
-जंगली जानवरों में यह बीमारी कई सालों से होती रही है। इस बीमारी से मरे हुए जानवर का मांस खाने, खून या त्वचा के संपर्क में आने से यह रोग मनुष्यों में भी फैल जाता है।
-मनुष्यों में बीमारी मरीज के सीधे संपर्क में आने से फैलती है। जैसे मरीज को करीब से छूना या उसके रक्त के संपर्क में आना। जैसे मरीज के रक्त या सिरिंज का चूक वश किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा इस्तेमाल करना।
-मरीज के मल व मूत्र, पसीना और उसकी लार के संपर्क में आने से यह रोग हो सकता है।
-कुछ रीति-रिवाजों के कारण लोग मृत व्यक्ति के पार्थिव शरीर को छूते हैं। इससे भी यह बीमारी फैलती है।
-मरीज के सेंपल (ब्लड और बॉडी फ्लूड) को असावधानीपूर्वक छूने से भी बीमारी फैल सकती है।
-यौन संपर्क से इस रोग के फैलने की जांच जारी है।
-अगर देखभ्भाल में पूरी सावधानी न बरती जाए, तो यह मरीज की देखभ्भाल रखने वाले डॉक्टर और नर्र्सों में भी फैल सकती है।
लक्षण
इस बीमारी का कोई खास लक्षण नहीं होता। यह रोग वायरल फीवर, डेंगू, मलेरिया और टाइफाइड के लक्षणों की तरह सामने आ सकता है। इसलिए बीमारी से प्रभावित क्षेत्रों में डॉक्टरों और जनसाधारण को सजग रहना होगा। इसके बावजूद इबोला के कुछ लक्षण इस प्रकार हैं…
-तेज बुखार और पेट दर्द।
-दस्त और उल्टियां होना।
-शरीर से रक्त स्राव।
-गुर्दे या किडनी पर दुष्प्रभाव।
-सांस लेने में तकलीफ।
-खांसी और पीलिया
जटिलता
-मरीज से किसी अन्य व्यक्ति को बीमारी फैलने और महामारी के बढ़ने का खतरा।
-बीमारी में मल्टीऑर्गेन फेल्यर। यानी शरीर के विभिन्न अंगों जैसे फेफड़ों और किडनी आदि का काम करना बंद कर देना। इस कारण अंत में मरीज की मौत हो जाती है।
इलाज
इस बीमारी का कोई विशेष उपचार नहीं है और न ही फिलहाल कोई एंटी वाइरल दवाएं उपलब्ध हैं। विभिन्न लक्षणों के आधार पर इलाज किया जाता है। मरीज को अन्य लोगों से अलग रखना (आइसोलेट) जरूरी है। प्रयोग के तौर पर कुछ इलाज मरीजों पर आजमाए जा रहे हैं
-जो मरीज इस बीमारी से ठीक हो चुके हैं, उनके ब्लड और प्लाज्मा को मरीज को देना। ऐसा सोचा गया है कि ऐसा करने से मरीज को बीमारी से लड़ने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता प्राप्त होती है।
-जैपमैप नामक मोनोक्लोनल एंटीबॉडी का भी इस्तेमाल करने से मरीजों को फायदा मिला है। यह दवा तंबाकू के पौधे से तैयार की जाती है।
बचाव
यह एक भयानक बीमारी है। इलाज करने से बेहतर है, रोग से बचाव करना। बचाव के लिए सरकार, डॉक्टर, आम जनता और समाज सेवी संगठनों आदि को मिलकर कदम उठाने चाहिए। सरकार अफ्रीका के इबोला प्रभावित देशों से आने वाले लोगों की एयरपोर्ट पर जांच करवाए और संदिग्ध लोगों को शीघ्र ही आधुनिक सुविधाओं से लैस अस्पताल के एक पृथक वार्ड में रखा जाए।
इसी तरह डॉक्टर इस रोग से प्रभावित मरीजों का इलाज करते समय सावधानी रखें। मास्क, ग्लव्स और गाउन का नियमित प्रयोग करें। मरीजों को पृथक (आइसोलेट) करें। लैब सैंपल की प्रोसेसिंग में खास सावधानी बरती जानी चाहिए।
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