कोमा में भी चलता है दिमाग़

कैंब्रिज विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने ये पता लगाया है कि कोमा में पड़े लोगों में भी दिमाग़ी चेतना हो सकती है.

घातक दिमाग़ी चोट वाले मरीज़ों के बारे में अमूमन डॉक्टरों की यह धारणा होती है कि भले ही वे जगे हुए नज़र आते हैं लेकिन वे आस-पास की दुनिया से अनजान होते हैं.

शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि उनके काम से ऐसे मरीज़ों की पहचान करने में मदद मिलेगी जिनमें वास्तव में चेतना है लेकिन वे संवाद करने में असमर्थ हैं.

वैज्ञानिकों ने निष्क्रिय अवस्था में पड़े 13 मरीज़ों का शोध करते वक़्त उनके दिमाग़ की नसों की विद्युतीय गतिविधि का आकलन करने के लिए इलेक्ट्रोड का इस्तेमाल किया.

जब इन मरीज़ों के दिमाग़ की नसों के विद्युतीय पैटर्न की तुलना स्वस्थ लोगों से की गई तो यह पता चला कि 13 में से चार मरीज़ों के दिमाग़ की नसों के विद्युतीय पैटर्न में काफ़ी समानता थी.

दूसरा चरण

प्रयोग के दूसरे चरण में वैज्ञानिकों ने इन चार मरीज़ों को टेनिस खेलने की कल्पना करने का निर्देश देते हुए इनके मस्तिष्क को एमआरआई मशीन से स्कैन किया.

टीम ने यह पाया कि तीन मरीज़ इतने सचेत थे कि वे निर्देश को समझ सकते थे और वे इसका अनुसरण करने का फ़ैसला कर सकते थे.

वैज्ञानिकों की ये रिपोर्ट पीएलओएस कम्प्यूटेशनल बायोलॉजी में प्रकाशित हुई है.

कार दुर्घटना में सिर में चोट लगने या घातक दिल का दौरा पड़ने पर कुछ लोग जगे हुए नज़र आते हैं लेकिन वे बेसुध अवस्था में होते हैं और वे संवाद नहीं कर पाते.

डॉक्टर इन मरीज़ों के मस्तिष्क की अवस्था को निष्क्रिय क़रार देते है.

हाल के शोध में मरीज़ों के इन लक्षणों पर सवाल उठाते हुए कहा गया है कि ऐसे मरीज़ जागरुक हो सकते हैं लेकिन वे बात नहीं कर पाते.

इस शोध से जुड़े डॉक्टर ट्रिस्टैन बेकिनश्टेन का कहना था कि इस परीक्षण की कुछ सीमाएं हैं लेकिन दूसरे प्रयोग से मरीज़ों की बीमारी और इलाज का आकलन करने में मदद मिल सकती है.

 

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