बुखार की बात हो तो हमारा ध्यान सीधे शरीर के बढ़े हुए तापमान पर जाता है। दरअसल, बुखार कोई रोग नहीं, बल्कि शरीर में हो रही कई प्रकार की गड़बड़ियों का सूचक है। ध्यान देने की बात ये है कि बुखार को मजाक में लेना घातक भी हो सकता है। यूं तो बाजार में शरीर के तापमान को कम करने के लिए दवाइयों की भरमार है, लेकिन इन दवाइयों के साइड इफेक्ट्स को भी ध्यान में रखना जरूरी है।
यदि हम हर्बल नुस्खों को अपनाएंगे तो किसी भी प्रकार साइड इफेक्ट्स की संभावनाएं काफी कम हो जाती हैं। यहां जानिए कुछ हर्बल नुस्खे जो बुखार को दूर करने में कारगर हैं। आदिवासी इलाकों में इन्हीं नुस्खों से बुखार का इलाज किया जाता है।
आदिवासियों के अनुसार, रत्ती पौधे की पत्तियों की सब्जी बेहद शक्तिवर्धक होती है। इसकी सब्जी खाने से बुखार उतर जाता है। आदिवासियों का ये भी मानना है कि इन पत्तियों की चाय बनाकर पीने से भी बुखार उतर जाता है, साथ ही सर्दी और खांसी में भी राहत मिलती है।
सप्तपर्णी की छाल का काढ़ा पिलाने से बदन दर्द और बुखार में आराम मिलता है। डांग-गुजरात के आदिवासियों के अनुसार, जुकाम और बुखार होने पर सप्तपर्णी की छाल, गिलोय का तना और नीम की आंतरिक छाल की समान मात्रा को कुचलकर काढ़ा बनाया जाए और रोगी को दिया जाए तो अतिशीघ्र आराम मिलता है। आधुनिक विज्ञान भी इसकी छाल से प्राप्त डीटेइन और डीटेमिन जैसे रसायनों को क्विनाइन से बेहतर मानता है।
- बुखार की हालत में जब सिर दर्द हो और सारे बदन में भी दर्द हो तो सिवान की पत्तियों को पीसकर सिर पर और शरीर के दर्द वाले हिस्सों पर लेप करने से दर्द और जलन समाप्त हो जाती हैं। डांगी आदिवासियों के अनुसार, सिवान की पत्तियों और छाल के रस में तिल के तेल को मिलाकर मालिश करने से बुखार के दौरान होने वाले शारीरिक दर्द में राहत मिलती है।
- सूरजमुखी की पत्तियों का रस निकाल कर मलेरिया आदि में बुखार आने पर शरीर पर लेप किया जाता है। पातालकोट के आदिवासियों का मानना है कि यह रस शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में मदद करता है।
डांग-गुजरात के आदिवासी सोनापाठा की लकड़ी का छोटा-सा प्याला बनाते हैं और रात को इसमें पानी भरकर रख लेते हैं। इस पानी को अगली सुबह बुखार के रोगी को देते हैं। आदिवासी इसकी जड़ की छाल का काढ़ा बनाकर कुल्ले करने की भी सलाह देते हैं। ऐसा माना जाता है कि ये बुखार के दौरान तापमान को नियंत्रित तो करता ही है, इसके अलावा मुंह के स्वाद को भी ठीक करता है।
- आदिवासी लोग हंसपदी के संपूर्ण अंगों यानी तना, पत्ती, जड़, फल और फूल लेकर सुखा लेते हैं और फ़िर एक साथ चूर्ण तैयार करते हैं। इस चूर्ण का चुटकी भर भाग शहद के साथ सुबह और शाम लेते हैं। इससे बुखार में आराम मिलता है।
- पातालकोट के आदिवासी मानते हैं कि हुरहुर की जड़ों के रस की कुछ मात्रा (लगभग 5 से 10 मिली) सुबह और शाम पिलाने से बुखार के बाद आई कमजोरी या सुस्ती में लाभ होता है।