बिस्तर पर पड़े रहने के बावजूद देर तक नींद न आना आजकल स्वास्थ्य संबंधी एक आम समस्या बन गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि वयस्क तो अमूमन तनाव के चलते इस बीमारी के शिकार हो जाते हैं, लेकिन आजकल बच्चों की भी नींद उड़ने लगी है। बच्चों में इस बीमारी के मुख्य कारण कोल्ड ड्रिंक, फास्ट फूड जैसे हाई कैलोरी युक्त भोजन, टीवी और कंप्यूटर गेम्स आदि बताए जाते हैं।
ब्रिटिश विशषज्ञों के मुताबिक अनिद्रा, नींद में चलना या फिर नींद में होने वाली सांस की समस्या ग्यारह साल से कम उम्र के बच्चों में भी तेजी से देखने में आ रही है। आंकड़ों के लिहाज से देखा जाए तो पिछले कुछ वर्षों में इस समस्या की दर तेजी से बढ़ी है।
दरअसल बदलते दौर में बच्चे देर रात तक टीवी देखते हैं या गेम खेलने में मशगूल रहते हैं। उनके खानपान में भी हाई कैलोरी युक्त चीजों का ज्यादा समावेश हो गया है। यह सब सम्मिलित रूप से बच्चों की नींद खराब करने लिए जिम्मेदार है।
प्रसिद्ध ब्रिटिश मनोचिकित्सक शेराल के मुताबिक माता-पिता की आधुनिक कार्यशैली भी इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार है। वे अक्सर काम के दबाव से देर से घर वापस आते हैं। इस कारण बच्चों से जल्दी सोने को नहीं कह पाते।
इसके अलावा बढ़ती असुरक्षा की भावना से भी बच्चों के घर से बाहर खेलने पर रोक लगा दी जाती है, जिससे बच्चे टीवी या कंप्यूटर की शरण में जाते हैं।
विशेषज्ञों ने अपने शोध में पाया कि टीवी की रोशनी, आवाज और हिलती-डुलती तस्वीरें बच्चों को जगाए रखती हैं। इसलिए बच्चों के बिस्तर पर जाने से एक घंटा पहले टेलीविजन और कंप्यूटर बंद हो जाने चाहिए।