बहरापन (डीफनेस) कई प्रकार का होता है।
कंडक्टिव डीफनेस: सामान्यत: कान के बहने से, कान के पर्दे का फट जाना या इसमें सुराख होना कंडक्टिव डीफनेस के कुछ प्रमुख कारण हैं। इसके अलावा कान के सुनने की सूक्ष्म हड्डियों-मेलियस, इनकस या स्टेपिस के नष्ट या गल जाने से यह बहरापन उत्पन्न होता है।
इलाज: इस प्रकार के बहरेपन का इलाज माइक्रोसर्जरी द्वारा संभव है। ऐसे ऑपरेशन में सुनने की हड्डी के गल जाने पर जो इंप्लांट इस्तेमाल किए जाते हैं, उन्हें टॉर्प या पॉर्प कहते हैं। टॉर्प व पॉर्प, टेफ्लॉन के या फिर टाइटैनियम के बने होते हैं। इस ऑपरेशन की सफलता दर 80 से 90 प्रतिशत होती है
आटोस्क्लीरोसिस: कान के बहरेपन की यह विचित्र बीमारी है। इस रोग में कान बहता नहींऔर सुनने की सबसे सूक्ष्म हड्डी स्ट्रेपिस सख्त हो जाती है, जिससे आवाज का कंपन बाधित होने से आंतरिक कान तक नहीं पहुंच पाता।
इलाज: कान के इस प्रकार के बहरेपन की समस्या के इलाज में जो इंप्लांट इस्तेमाल करते हैं, उन्हें पिस्टन कहते हैं,जो टेफ्लॉन, सोना, या टाइटैनियम से निर्मित होते हैं।
सेंसरी न्यूरल डीफनेस (नसों से संबंधित बहरापन): इस तरीके का बहरापन पैदाइशी, कान के बहने या कान में चोट लगने के कारण होता है। इसके अलावा मस्तिष्क में संक्रमण जैसे मेनिनजाइटिस, इनसेफेलाइटिस आदि के कारण होता है।
अत्यधिक बहरापन: बहुत ज्यादा बहरेपन की स्थिति में कोक्लियर इंप्लांट का इस्तेमाल किया जाता है।
जैसे पैदाइशी बहरेपन की स्थिति में। इस स्थिति में बच्चे की भाषा विकसित नहीं होती और ऐसे बच्चे गूंगे और बहरे कहलाते हैं। इन बच्चों के लिए एक ही इलाज है, जिसे कोक्लियर इंप्लांट कहते हैं। इस ऑपरेशन की तकनीक आसान है। ऑपरेशन के बाद तीन साल तक बच्चे को स्पीच थेरेपी दी जाती है।
टोटली इंप्लांटेबल मिडिल ईयर इंप्लांट्स: जैसे एस्टीम, जो उन लोगों के लिए है, जिनमें सुनने की क्षमता मध्यम दर्जे की होती है। यह एक तरह का हियरिंग एड है, जो ऑपरेशन करके कान के अंदर ही फिट कर दिया जाता है। डिजिटल सुनने की मशीन को भी कान के अंदर लगाया जाता है।
मिश्रित बहरापन: इसमें कंडक्टिव डीफनेस और सुनने की नस का बहरापन दोनों ही शामिल होता है। यह स्थिति लंबे वक्त तक कान के बहने से उत्पन्न हो सकती है। कान के बहने से उत्पन्न मिक्स्ड डीफनेस में बोन एंकरिंग हियरिंग इंप्लांट लगाते हैं। इस तरह के मिश्रित बहरेपन में जिसमें मध्यम दर्जे की सुनने की क्षमता क्षीण होती है और जिसमें कान बहता नहीं है, उसमें एक नया वाइब्रेटिंग साउंड ब्रिज लगाया जाता है।
किस परिस्थिति में व्यक्ति को कौन सा इंप्लांट लगेगा, इस संदर्भ में राय किसी ईएनटी विशेषज्ञ की योग्यता पर निर्भर करती है।