इस वर्ष हेपेटाइटिस डे की थीम का आशय है- ‘यह हेपेटाइटिस है, इसे जानिए और मुकाबला कीजिए।’ इस स्लोगन का तात्पर्य लोगों को इस गंभीर रोग के बारे में जानने के लिए प्रोत्साहित करना है। भारत में हेपेटाइटिस की स्थिति तेजी से बदतर होती जा रही है।
रोग का स्वरूप
हेपेटाइटिस एक वायरल संक्रमण है, जो लिवर में सूजन व जलन का कारण बनता है। यह रोग बहुत कम लक्षणों या लक्षणों के बगैर भी उभर सकता है। जब यह रोग 6 महीनों से कम अवधि तक रहे, तो इसे ‘एक्यूट’ कहा जाता है और इससे ज्यादा वक्त तक रहने पर इसे ‘क्रॉनिक’ करार दिया जाता है। वायरल हेपेटाइटिस को पांच श्रेणियों- ए,बी,सी,डी और ई- में विभाजित किया गया है।
एक्यूट हेपेटाइटिस में फ्लू जैसे लक्षण प्रकट होते है। इनमें मांसपेशियों व जोड़ों में पीड़ा, बुखार, बेचैनी, जी मिचलाना और दस्त आदि शिकायतों को शामिल किया जा सकता है। हेपेटाइटिस-ए की प्रवृत्ति, ‘एक्यूट’ किस्म की होती है। यह प्रदूषित जल व प्रदूषित खाद्य पदार्थो को ग्रहण करने की वजह से होता है। इसके लक्षण संक्रमण होने के 8 से 10 दिनों में प्रकट होते हैं, और इससे पैदा होने वाली बीमारी छह हफ्तों तक बरकरार रह सकती है।
क्रॉनिक हेपेटाइटिस में आम तौर पर शुरू में कोई लक्षण प्रकट नहींहोते। यह बहुत गंभीर स्थिति है जो बाद में कई बड़ी शारीरिक समस्याओं का कारण बनती है। इस बीमारी के लक्षणों में लिवर बढ़ना, पेट में पानी भरना और पीलिया को शुमार किया जाता है। अंतत: यह रोग लिवर सिरोसिस में भी तब्दील हो सकता है। हेपेटाइटिस ‘बी’ और ‘सी’ क्रॉनिक किस्म के हैं और ये संक्रमित रक्त, असुरक्षित सेक्स और संक्रमित सुई द्वारा फैलते हैं। हेपेटाइटिस-ई का वायरस मुख्यत: दूषित पेयजल व प्रदूषित खाद्य पदार्थो के जरिए फैलता है। यह रोग आम तौर पर 4 से 6 हफ्तों में ठीक हो जाता है। इस रोग में लिवर सूज जाता है।
इन बातों पर दें ध्यान :
हेपेटाइटिस ए और बी से बचाव के लिए वैक्सीनेशन उपलब्ध है। पीने से पहले पानी को उबालकर और फिर इसे ठंडा कर पिएं। साफ-सफाई बनाए रखनी चाहिए और सड़कों पर बिकने वाले खाद्य पदार्र्थो से बचना चाहिए।
इलाज
हेपेटाइटिस का इलाज कराना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि जितनी तीव्रता से यह रोग काबू में आएगा, पीड़ित व्यक्ति के लिवर को उतनी ही कम क्षति पहुंचेगी। वर्तमान में उपलब्ध उपचार- इंटरफेरॉन्स और एंटी-वाइरल दवाएं हैं। गंभीर मामलों में लिवर का ट्रांसप्लांट भी किया जाता है।
संक्रमण से बचाव रोगियों के लिए
-कभी भी टूथब्रश या रेजर किसी अन्य व्यक्ति के साथ ‘शेयर’ न करें।
-जो उपकरण ठीक से रोगाणुमुक्त न किए गए हों, उनसे टैटू या शरीर पर किसी तरह का चित्र न बनवाएं।
-हमेशा डिस्पोजल सुइयां इस्तेमाल करें।
-सुरक्षित रूप से शारीरिक संबंध स्थापित करें।
स्वास्थ्य कर्मियों के लिए
-रक्त से सीधे संपर्क से बचने के लिए हमेशा प्लास्टिक के दस्ताने पहनें।
-एक सिरिंज को एक से अधिक रोगी के लिए इस्तेमाल न करें। भले ही सुई बदल दी गई हो।
-इस्तेमाल के बाद सुई फेंक दें।
-यह सुनिश्चित करें कि आप और आपके स्टाफ को हेपेटाइटिस का टीका लगा है।