स्पाइन सर्जन होने के बावजूद मैंने एक मरीज मिसेज अल्का शर्मा को जब यह बताया कि वह टी.बी. से पीड़ित हैं, तब वह पूरी तरह चौंक गयीं। इस पर उन्होंने मुझसे कहा कि क्या आप मजाक कर रहे हैं डाक्टर साहब? टी.बी. तो फेफडे़ से जुड़ी बीमारी है और आप रीढ़ की हड़िडयों के डॉक्टर हैं।
वास्तव में अधिकतर लोग आज भी टीबी को मात्र फेफडे़ से जुड़ी बीमारी ही समझते हैं। इसका यह मतलब है कि रीढ़ की हड्डियों में टी.बी. के बारे में लोग कम जागरूक हैं। इस संदर्भ में लोगों को जागरूक करने की जरूरत है।
लक्षण और जांचे
मिसेज शर्मा पिछले कई सप्ताह से पीठ के भयंकर दर्द, बुखार, रात में पसीना आने और भूख न लगने से परेशान थीं। इसके साथ ही उनका वजन भी काफी घट चुका था और उन्हें अपने हाथ-पैरों में काफी दर्द और अकड़न महसूस हो रही थी। उन्हें उठने-बैठने और चलने में भी तकलीफ हो रही थी। रीढ़ की हड्डी के टीबी के इन प्रारंभिक लक्षणों को देखकर मैंने उन्हें सीटी स्कैन, एमआरआई, ईएसआर की जांच और टयूबरक्यूलिन स्किन टेस्ट कराने के लिए कहा। इन जांचों से पता चला कि मिसेज शर्मा काइफोटिक डिफॉर्मिटी (रीढ़ की हड्डियों के संकुचन) से पीड़ित हैं।
रीढ़ की हड्डियों की टीबी को पॉट्स डिजीज भी कहते हैं। यह ऐसी अवस्था है जिसमें वर्टिब्रा में टी.बी. हो जाती है।
यह स्थिति जीवाणु माइकोबैक्टेरियम की वजह से उत्पन्न होती है, जो टीबी से ग्रस्त व्यक्ति के खून या सांस के जरिये शरीर में पहुंचता है। यह बैक्टीरिया कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण शरीर में फलता-फूलता है और रक्त के प्रवाह में मिल जाता है। इसके बाद यह शरीर के कई अंगों को प्रभावित कर सकता है- रीढ़ की हड्डियों को भी।
यह टी.बी. रीढ़ की हड्डी को संकुचित कर देती है। इस कारण तंत्रिका तंत्र से संबंधित कई समस्याएं (न्यूरो प्रॉब्लम्स) उत्पन्न हो जाती हैं। यह बीमारी नसों (नर्व्स) को प्रभावित करती है और इस कारण पीड़ित व्यक्ति की महसूस करने की क्षमता में समस्या आ जाती है। इस वजह से लकवा पैराप्लीजिया (महसूस करने की क्षमता पर दुष्प्रभाव) और काइफोसिस (रीढ़ की हड्डी में झुकाव) आदि समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
बीमारी को नजरअंदाज करने से कूबड़ निकल सकता है,जिससे पोस्चर खराब हो सकता है और लकवा तक मार सकता है। याद रखें, समुचित उपचार से रीढ़ की हड्डी की टीबी पूरी तरह ठीक हो सकती है।
इलाज
रीढ़ की हड्डी में टी.बी. की बीमारी का इलाज एंटीट्यूबरक्युलर कीमोथेरेपी (एटीटी) से किया जाता है। इस थेरेपी की सुविधा अधिकतर सरकारी अस्पतालों और डिस्पेंसरियों में उपलब्ध है। नेशनल ट्यूबरक्युलोसिस कंट्रोल प्रोग्राम के अंतर्गत यह थेरेपी निशुल्क उपलब्ध है। चूंकि इस बीमारी में कमर की रीढ़ की हड्डी संक्रमण और पस पड़ने के कारण गल चुकी होती है, इसलिए इसे विकृति से बचाने के लिए ब्रेस(एक तरह की बेल्ट) की मदद ली जाती है ताकि रीढ़ की हड्डी को सपोर्ट मिल सके।
अगर रीढ़ की हड्डी के आंतरिक भाग में बहुत ज्यादा पस भरा है, जो नसों (नर्व्स) को दबा रहा है (इस स्थिति में पीड़ित व्यक्ति को लकवा लगने का खतरा बढ़ जाता है) तो ऐसी हालत में ऑपरेशन करके पस को निकाल देना नसों की सेहत के लिए जरूरी है।