योग क्या है ?

योग क्या है ?

योग की उत्पत्ति संस्कृत शब्द ‘युज’ से हुई है जिसका अर्थ जोड़ना है।

 योग शब्द के दो अर्थ हैं और दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। पहला है- जोड़ और दूसरा है समाधि। 

जब तक हम स्वयं से नहीं जुड़ते, समाधि तक पहुंचना असंभव होगा।

 योग का अर्थ परमात्मा से मिलन है।

छह भारतीय दर्शन : (six philosophies of hindu India) 

भारत के छह दर्शनों में से एक है योग। 

ये छह दर्शन हैं- 

1.न्याय 
2.वैशेषिक 
3.मीमांसा 
4.सांख्य 
5.वेदांत और 
6.योग।

योग के प्रकार : (types of yoga) : 

वेद, पुराण आदि ग्रन्थों में योग के अनेक प्रकार बताए गए हैं। 

भगवान कृष्ण ने योग के तीन प्रकार बताए हैं- 
ज्ञान योग, कर्म योग और भक्ति योग। 

जबकि योग प्रदीप में योग के दस प्रकार बताए गए हैं- 1.राज योग, 
2.अष्टांग योग, 
3.हठ योग, 
4.लय योग, 
5.ध्यान योग, 
6.भक्ति योग, 
7.क्रिया योग, 
8.मंत्र योग, 
9.कर्म योग और 
10.ज्ञान योग। 

इसके अलावा होते हैं- धर्म योग, तंत्र योग, नाद योग आदि।

आष्टांग योग (Ashtanga yoga) : 

आष्टांग योग का सर्वाधिक प्रचलन और महत्व है। आष्टांग योग अर्थात योग के आठ अंग। यह आठ अंग सभी धर्मों का सार है। उक्त आठ अंगों से बाहर धर्म, योग, दर्शन, मनोविज्ञान आदि तत्वों की कल्पना नहीं की जा सकती।
यह आठ अंग हैं- 

(1)यम 
(2)नियम 
(3)आसन 
(4)प्राणायम 
(5)प्रत्याहार 
(6)धारणा 
(7)ध्यान और 
(8)समाधि।

 
1.यम- (yama) सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अस्तेय और अपरिग्रह।

2.नियम- (niyama) शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर प्रणिधान।

3.आसन- (asana) आसनों के अनेक प्रकार हैं। आसन के संबंध में हठयोग प्रदीपिका, घरेण्ड संहिता तथा योगाशिखोपनिषद् में विस्तार से वर्णन मिलता है।

4.प्राणायाम- (pranayama) नाड़ी शोधन और जागरण के लिए किया जाने वाला श्वास और प्रश्वास का नियमन प्राणायाम है। प्राणायम के भी अनेकों प्रकार हैं।

5.प्रत्याहार- (pratyahara)इंद्रियों को विषयों से हटाकर अंतरमुख करने का नाम ही प्रत्याहार है।

6.धारणा- (dharana) चित्त को एक स्थान विशेष पर केंद्रित करना ही धारणा है।

7.ध्यान- (dhyana yoga) ध्यान का अर्थ है सदा जाग्रत या साक्षी भाव में रहना अर्थात भूत और भविष्य की कल्पना तथा विचार से परे पूर्णत: वर्तमान में जीना।

8.समाधि- (samadhi yoga) समाधि के दो प्रकार है- संप्रज्ञात और असंप्रज्ञात। समाधि मोक्ष है। मोक्ष प्राप्त करने के लिए उपरोक्त सात कदम क्रमश: चलना होता है।

योग का संक्षिप्त इतिहास (History of Yoga) :

 योग का उपदेश सर्वप्रथम हिरण्यगर्भ ब्रह्मा ने सनकादिकों को, पश्चात विवस्वान (सूर्य) को दिया। बाद में यह दो शखाओं में विभक्त हो गया। 

एक ब्रह्मयोग और दूसरा कर्मयोग। 

ब्रह्मयोग की परम्परा सनक, सनन्दन, सनातन, कपिल, आसुरि, वोढु और पच्चंशिख नारद-शुकादिकों ने शुरू की थी। यह ब्रह्मयोग लोगों के बीच में ज्ञान, अध्यात्म और सांख्य योग नाम से प्रसिद्ध हुआ।

दूसरी कर्मयोग की परम्परा विवस्वान की है। विवस्वान ने मनु को, मनु ने इक्ष्वाकु को, इक्ष्वाकु ने राजर्षियों एवं प्रजाओं को योग का उपदेश दिया। 

उक्त सभी बातों का वेद और पुराणों में उल्लेख मिलता है। वेद को संसार की प्रथम पुस्तक माना जाता है जिसका उत्पत्ति काल लगभग 10000 वर्ष पूर्व का माना जाता है। 

पुरातत्ववेत्ताओं अनुसार योग की उत्पत्ति 5000 ई.पू. में हुई। गुरु-शिष्य परम्परा के द्वारा योग का ज्ञान परम्परागत तौर पर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को मिलता रहा।

भारतीय योग जानकारों के अनुसार योग की उत्पत्ति भारत में लगभग 5000 वर्ष से भी अधिक समय पहले हुई थी। 

योग की सबसे आश्चर्यजनक खोज 1920 के शुरुआत में हुई। 1920 में पुरातत्व वैज्ञानिकों ने 'सिंधु सरस्वती सभ्यता' को खोजा था जिसमें प्राचीन हिंदू धर्म और योग की परंपरा होने के सबूत मिलते हैं। सिंधु घाटी सभ्यता को 3300-1700 बी.सी.ई. पूराना माना जाता है।

योग ग्रंथ योग सूत्र (Yoga Sutras Books) : 

वेद, उपनिषद्, भगवद गीता, हठ योग प्रदीपिका, योग दर्शन, शिव संहिता और विभिन्न तंत्र ग्रंथों में योग विद्या का उल्लेख मिलता है। सभी को आधार बनाकर पतंजलि ने योग सूत्र लिखा।

 योग पर लिखा गया सर्वप्रथम सुव्यव्यवस्थित ग्रंथ है- योगसूत्र। 

योगसूत्र को पांतजलि ने 200 ई.पूर्व लिखा था। इस ग्रंथ पर अब तक हजारों भाष्य (yoga bhashy) लिखे जा चुके हैं।

स्वास्थ्य एवं पोषण संबंधित सभी प्रकार के प्रश्नों के लिए आप हमसे संपर्क  कर सकते हैं

स्वास्थ्य सम्बंधित समस्या के लिए फार्म भरें .

या 

WhatsApp No 6396209559  या

हमें फ़ोन काल करें 6396209559