घुटने की गठिया-संभावनाओं का नया दौर

घुटने की गठिया से पीड़ित लोगों के लिए सन् 1974 यादगार ऐतिहासिक साल रहा। ऐसा इसलिए, क्योंकि इसी साल डॉ. रानावत, डॉ. इनसाल और इंग्लैंड के इंजीनियर मिस्टर वॉकर ने घुटने की गठिया से पीड़ित लोगों के लिए कृत्रिम घुटने की उस दौर की सबसे उम्दा डिजायन पेश की थी। घुटना प्रत्यारोपण सर्जरी इस सदी की सबसे सफलतम सर्जरी है और अब तक लाखों लोग इस सर्जरी से लाभान्वित हो चुके हैं। गौरतलब है कि उपर्युक्त सफलतम इंप्लांट में भी कुछ कमियां थीं। जैसे..

-सीढ़ी चढ़ने-उतरने में दिक्कत महसूस होती थी।

-कृत्रिम घुटने के प्रत्यारोपण के बाद व्यक्ति को फर्श पर बैठने में परेशानी महसूस होती थी।

-इंप्लांट का प्लास्टिक घिसने लगता था।

-कृत्रिम घुटने की कटोरी आवाज करती थी।

-कभी-कभी व्यक्ति को यह अहसास होता था कि उसे जो कृत्रिम घुटना प्रत्यारोपित किया गया है, वह कुदरती घुटने की तरह कार्य नहींकरता लेकिन

-ये दिल मांगे मोर’ की तर्ज पर इन खामियों को खूबियों में बदलने का प्रयास किया गया। नतीजतन कृत्रिम घुटने का जो आधुनिततम इंप्लांट सामने आया है, वह कुदरती घुटने की तरह कार्य करता है और वह कृत्रिम घुटनों से संबंधित अतीत की प्राय:सभी कमियों से मुक्त है। एफडीए द्वारा प्रमाणित यह कृत्रिम घुटना भारत में एट्यून नी के नाम से उपलब्ध है।

प्रमुख विशेषताएं

इस इंप्लांट की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं..

-यह इंप्लांट शारीरिक संरचना के अनुकूल है और इंजीनियरिंग के सिद्धांत पर आधारित है। कुदरती घुटने का जो डिजायन है, यह इंप्लांट उसके अनुकूल है।

-सटीक डिजायनिंग इस इंप्लांट की एक अन्य खासियत है।

-इंप्लांट में पेटेंटेड पॉलीमर का इस्तेमाल किया गया है। कहने का आशय यह है कि पिछले मैटीरियल की विफलता से सबक लेकर इस नए इंप्लांट में रासायनिक बदलाव किए गए हैं। इस कारण इंप्लांट की कार्य अवधि 25 से 30 फीसदी तक बढ़ गयी है।

-हल्का होने के बावजूद इस इंप्लांट में भार वहन करने की क्षमता ज्यादा है।

-अभी तक जोड़ों (ज्वाइंट्स) के

1500 कॉम्बिनेशन इस्तेमाल होते थे, लेकिन नए इंप्लांट में 5000 कॉम्बिनेशन का इस्तेमाल किया जाता है ताकि हर मरीज की शारीरिक संरचना के अनुरूप इंप्लांट को ढाला जा सके।

-यह इंप्लांट कुदरती घुटने की तरह ही मुड़ता है। मुड़ने के बावजूद इसकी भार वहन क्षमता कम नहीं होती, जिसका सबसे बड़ा फायदा सीढि़यां चढ़ने व उतरने में मिलता है। इंप्लांट लगाने के चौथे दिन ही मरीजों को सीढि़यां चढ़ने -उतरने का अभ्यास कराया जाता है।

 

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